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vijayakanth 2025| विजयकांत और उनके बेटे: 'कैप्टन' की विरासत और उनके उत्तराधिकारी की कहानी

 


विजयकांत और उनके बेटे: 'कैप्टन' की विरासत और उनके उत्तराधिकारी की कहानी

तमिल सिनेमा के इतिहास में कुछ ही ऐसे नाम हैं जो एक शख्सियत से कहीं बढ़कर एक 'छवि' बन गए। उनमें से एक हैं विजयकांत। 'पुरुषा देवन' (मर्द का देवता) और 'कैप्टन' जैसे उपनामों से मशहूर विजयकांत सिर्फ एक एक्शन हीरो या नेता ही नहीं, बल्कि एक ऐसी लीजेंड थे जिन्होंने अपने अदाकारी के जलवे और राजनीतिक सफर से लाखों दिलों पर राज किया। लेकिन उनकी इस विशाल विरासत का भविष्य क्या है? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए हमें उनके सबसे छोटे बेटे और राजनीतिक वारिस, शनमुगam पांडियन उर्फ विजय प्रभाकर की ओर देखना होगा।

विजयकांत: एक ऐसा सितारा जो 'कैप्टन' बना

विजयकांत का सफर एक साधारण परिवार से शुरू हुआ और वह तमिल सिनेमा के सबसे बड़े सितारों में शामिल हो गए। 1980 और 90 के दशक में उन्होंने एक ऐसे हीरो की छवि गढ़ी जो आम आदमी की आवाज़ था, जो अन्याय के खिलाफ आवाज़ बुलंद करता था। उनक फिल्में, जैसे 'सेंदूरा पूवे''चिन्ना गौंडर', और 'हीरो' सुपरहिट रहीं। उनकी अदाकारी की खास बात थी उनकी आँखों का भाव और एक्शन सीन्स करने का अनोखा अंदाज।

लेकिन विजयकांत सिर्फ स्क्रीन के हीरो नहीं रहना चाहते थे। 2005 में, उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी, देशिया मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम (DMDK) का गठन किया। 'कैप्टन' का यह नया अवतार अत्यंत प्रभावशाली रहा। 2006 के चुनाव में, पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए एक नए राजनीतिक बल के उदय का संकेत दिया। 2011 में, DMDK AIADMK के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल हुई और विजयकांत तमिलनाडु के विपक्ष के नेता बने। यह उनके राजनीतिक करियर का शिखर था।

दुर्भाग्यवश, बाद के वर्षों में स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उनकी सक्रियता कम होती गई, और पार्टी भी आंतरिक मतभेदों का शिकार होने लगी।

विजय प्रभाकर: विरासत को संभालते हैंड्स

इस पृष्ठभूमि में, जब विजयकांत का निधन हुआ, तो एक बहुत बड़ा सवाल उठा: क्या उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला कोई है? इसका जवाब उनके छोटे बेटे, विजय प्रभाकर के रूप में सामने आया।

विजय प्रभाकर, जिनका जन्म 1989 में हुआ, विजयकांत और उनकी पत्नी प्रेमलता की दूसरी संतान हैं। उनके बड़े बेटे, विजय चंद्रशेखर, ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा, लेकिन राजनीति से largely दूर रहे। इसलिए, विरासत की बागडोर संभालने की जिम्मेदारी स्वतः ही विजय प्रभाकर पर आ गई।

शुरुआती जीवन और फिल्मी सफर:
विजय प्रभाकर ने भी अपने करियर की शुरुआत सिनेमा से की। उन्होंने 2015 में फिल्म 'पाambु एंबियुम' से अभिनय की दुनिया में कदम रखा। हालाँकि, उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खास कमाल नहीं दिखा पाईं। ऐसा माना जाता है कि उनका मन भी ज्यादा दिनों तक अभिनय में नहीं रहा और वह धीरे-धीरे अपने पिता की राजनीतिक गतिविधियों की ओर ध्यान देने लगे।

राजनीति में पदार्पण:
विजयकांत के बिगड़ते स्वास्थ्य के दौरान, विजय प्रभाकर पार्टी की बैठकों और कार्यक्रमों में दिखाई देने लगे थे। वह अपने पिता के साथ सार्वजनिक रूप से नजर आते, जिससे यह स्पष्ट हो गया था कि उन्हें ही भविष्य के लिए तैयार किया जा रहा है।

दिसंबर 2023 में विजयकांत के निधन के बाद, पार्टी और परिवार ने सर्वसम्मति से विजय प्रभाकर को ही DMDK का नया अध्यक्ष चुना। उन्होंने पार्टी के नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाल ली और 2024 का लोकसभा चुनाव उनकी पहली बड़ी परीक्षा थी।

चुनौतियाँ और अवसर

विजय प्रभाकर के सामने अभी बहुत बड़ी चुनौतियाँ हैं:

  1. पार्टी का पुनर्निर्माण: DMDK पिछले कुछ वर्षों में काफी कमजोर हुई है। कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर अन्य दलों में चले गए हैं। विजय प्रभाकर की सबसे बड़ी जिम्मेदारी पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भरना और संगठन को मजबूत करना है।

  2. 'कैप्टन' की छाया: विजयकांत की विरासत एक आशीर्वाद भी है और एक चुनौती भी। लोग उनकी तुलना अपने पिता से करेंगे, जो एक देवतुल्य व्यक्तित्व थे। विजय प्रभाकर को अपनी एक अलग पहचान बनानी होगी।

  3. विजयकांत का 'आम आदमी' वाला चरित्र: विजयकांत की सबसे बड़ी ताकत थी आम जनता से जुड़ाव। विजय प्रभाकर, जो एक अमीर परिवार से ताल्लुक रखते हैं, उसी जनाधार को कैसे हासिल कर पाते हैं, यह देखना होगा।

हालाँकि, अवसर भी मौजूद हैं:

  • युवा नेतृत्व: तमिलनाडु की राजनीति में एक युवा चेहरा हमेशा एक ताज़ा हवा की तरह हो सकता है।

  • विरासत का सम्मान: अभी भी लाखों लोग हैं जो विजयकांत को प्यार करते हैं और उनकी विरासत को जीवित देखना चाहते हैं। यह भावनात्मक जुड़ाव विजय प्रभाकर के लिए एक बड़ा सहारा बन सकता है।

: एक नई शुरुआत

विजय प्रभाकर का सफर अभी शुरुआती दौर में है। वह अभी एक 'वारिस' हैं, एक 'लीडर' बनने की प्रक्रिया में। उनके पास अपने पिता जैसा करिश्मा और अनुभव नहीं है, लेकिन उनके पास एक जबरदस्त विरासत और सीखने का मौका है।

आने वाले समय में, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या विजय प्रभाकर सिर्फ विजयकांत के बेटे के तौर पर याद किए जाएंगे या फिर वह अपने दम पर तमिलनाडु की राजनीति के पटल पर एक नया और अहम मुकाम बना पाते हैं। एक बात तो तय है: 'कैप्टन' का नाम और उनका काम उनके बेटे के लिए हमेशा एक मार्गदर्शक की तरह रोशनी करता रहेगा। 

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