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वाराणसी: सिनेमा की पवित्र पटकथा

वाराणसी की गलियाँ, गंगा का घाट, मंदिरों की घंटियों की खनक, और आस्था का अद्वितीय संगम... ये सभी तत्व मिलकर एक ऐसा जीवंत कैनवास तैयार करते हैं, जो फिल्मकारों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। वाराणसी पर बनी फिल्में सिर्फ कहानी नहीं सुनातीं, बल्कि दर्शक को एक 'अनुभव' में शामिल करती हैं। यह शहर फिल्मों में एक ऐसा सशक्त चरित्र बनकर उभरता है जो कथानक को गहराई, रहस्य और आध्यात्मिकता प्रदान करता है।

गंगा-जमुनी तहजीब का केंद्र: सामाजिक ताने-बाने की फिल्में

वाराणसी हमेशा से विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के संगम का प्रतीक रहा है। कई फिल्मकारों ने इसी 'गंगा-जमुनी तहजीब' को अपनी फिल्मों का केंद्र बनाया है।

  • मसान (2015): यह फिल्म आधुनिक वाराणसी के एक कड़वे यथार्थ को दिखाती है। एक ओर जहाँ गंगा में मोक्ष की खोज है, वहीं दूसरी ओर जाति और वर्ग का बंधन है। फिल्म वाराणसी के दो अलग-अलग चेहरे दिखाती है - एक, डीपी (दीपक) का, जो एक निचली जाति का युवक है और प्यार की तलाश में है, और दूसरी, शालु (शिवानी) का, जो उच्च वर्ग से आती है और एक स्कैंडल से उबरने की कोशिश कर रही है। दोनों की कहानियाँ गंगा के घाटों पर आकर मिलती हैं, जो मोक्ष और नई शुरुआत दोनों का प्रतीक है। निर्देशक नीरज घयवान ने बखूबी दिखाया कि कैसे एक प्राचीन शहर आधुनिक चुनौतियों से जूझ रहा है।

  • दिल से.. (1998): मणि रत्नम की इस महाकाव्य प्रेम कहानी में वाराणसी की पृष्ठभूमि बेहद अहम है। अमर (प्रेम) और मेघना (देशभक्ति) की पहली मुलाकात वाराणसी की एक सर्द सुबह ट्रेन में होती है। यह शहर उनके प्यार की नींव का गवाह बनता है। बाद में, जब अमर मेघना को ढूंढ़ते हुए कश्मीर जाता है, तो वाराणसी की यादें उसके साथ होती हैं। यहाँ वाराणसी शुद्ध, निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है।

आस्था और आध्यात्म की नगरी: मोक्ष की खोज

वाराणसी का सबसे प्रमुख पहलू इसकी आध्यात्मिकता है। दुनिया भर से लोग यहाँ मोक्ष और आंतरिक शांति की तलाश में आते हैं। सिनेमा ने इस पहलू को भी खूब उकेरा है।

  • राजा हिन्दुस्तानी (1996): इस ब्लॉकबस्टर फिल्म में वाराणसी रोमांस का खूबसूरत नजारा पेश करता है। आरती (करीना कपूर) और राजा (आमिर खान) की मुलाकात यहीं होती है। गंगा आरती, नाव की सवारी, और घाटों पर उनके प्यार के दृश्य आज भी लोगों के जेहन में हैं। यहाँ वाराणसी प्रेम की पवित्रता और सादगी का प्रतीक है।

  • सन्यासी (2018): यह फिल्म सीधे तौर पर वाराणसी के आध्यात्मिक और रहस्यमय पहलू को दर्शाती है। एक सन्यासी (अभय देओल) की भूमिका में, जो अतीत के रहस्यों से जूझ रहा है, फिल्म शहर के अंधेरे और रहस्यमय कोनों में घूमती है। यह दिखाती है कि वाराणसी सिर्फ मोक्ष का ही नहीं, बल्कि रहस्य और रहस्यमय शक्तियों का भी शहर है।

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अंधेरे की गलियाँ: क्राइम और थ्रिलर

वाराणसी का एक और पहलू है जो सिनेमा के लिए उपयुक्त है - इसकी तंग, अंधेरी गलियाँ और रहस्यमय वातावरण। यह पहलू क्राइम और थ्रिलर जैनर के लिए बिल्कुल सही है।

  • रामान राघव 2.0 (2016): अनुराग कश्यप की इस साइकोलॉजिकल थ्रिलर में वाराणसी एक डरावनी और अशुभ पृष्ठभूमि प्रदान करता है। यह शहर सीरियल किलर राघव (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) की विकृत मानसिकता का साक्षी बनता है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी वाराणसी के उस अंधेरे, कम देखे गए पहलू को दिखाती है, जो पर्यटकों को दिखाई नहीं देता। यहाँ वाराणसी पाप और पुण्य के बीच की लड़ाई का मैदान है।

  • मोहल्ला अस्सी (2012): हालाँकि यह फिल्म एक कॉमेडी-ड्रामा है, लेकिन इसमें वाराणसी के सामाजिक-राजनीतिक पहलू को भी दिखाया गया है। यह फिल्म वाराणसी के एक मोहल्ले 'अस्सी' के आसपास के लोगों के जीवन, उनकी समस्याओं, और धर्म के व्यवसायीकरण पर एक व्यंग्यात्मक नज़रिया पेश करती है। यह फिल्म वाराणसी के स्थानीय जीवन की एक झलक दिखाती है।

वाराणसी: सिनेमा के परदे पर जीवंत क्यों है?

वाराणसी फिल्मकारों के लिए इतना आकर्षक क्यों है? इसके कई कारण हैं:

  1. दृश्यात्मक समृद्धि: गंगा के घाट, सुबह की धुंध, दीयों की रोशनी, प्राचीन इमारतें... ये सभी तत्व एक अद्भुत दृश्यात्मक सौंदर्य पैदा करते हैं जो कैमरे में बेहद खूबसूरत लगता है।

  2. भावनात्मक गहराई: यह शहर जीवन, मृत्यु, आस्था, प्रेम, और हानि जैसी सार्वभौमिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। ये विषय किसी भी कहानी को गहराई और भावनात्मक वजन दे सकते हैं।

  3. विरोधाभासों का शहर: वाराणसी विरोधाभासों का शहर है - यहाँ जीवन और मृत्यु एक साथ बसते हैं, प्राचीनता और आधुनिकता साथ-साथ चलती है। यह विरोधाभास दिलचस्प कथानक के लिए उपजाऊ जमीन प्रदान करता है।

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