What happens, happens for the good . क्या जो होता है अच्छे के लिए होता है ?
जब एक के बाद एक फेलियर्स मिल रहे हो या फिर वैसा ना हो रहा हो जैसा हम चाहते हैं या जो हम करना चाहते हैं उसमें रुकावट आ रही हो एक के बाद एक तो फिर हमारी थॉट प्रोसेस क्या होनी चाहिए क्या यह होनी चाहिए कि जो होता है अच्छे के लिए होता है और हम उस पर डटे रहें। उस पर स्टिक रहे या फिर अपने पाथ को चेंज करें।
क्योंकि अगर जो होता है अच्छे के लिए होता है तो चाहे हम वो कर रहे हैं चाहे छोड़ रहे हैं। दोनों ही केस में अप्लाई हो रहा है ये। चाहे आप शादी कर रहे हो चाहे डिवोर्स कर रहे हो। दोनों तरफ से अच्छे के लिए हो रहा है ना। अगर हो रहा है तो। नहीं तो फिर जो होता है अच्छे के लिए कैसे होता है? फिर तो यह होता है तो अच्छे के लिए होता है। वह होता है तो बुरे के लिए होता है। तो यह एक थॉट है, एक सोच है कि जो होता है अच्छे के लिए होता है।
बट इसका मतलब यह नहीं है कि इस थॉट को पकड़ करके हम कुछ ऐसा करते रहे जहां पर रिजल्ट आने की पॉसिबिलिटी ऑलमोस्ट 0% है। कि मतलब इमेजिन करो के कोई इंसान है वह अपने घर की छत पर जाकर के कूद रहा है नॉनस्टॉप पिछले 20 30 साल से तारों को छूने की कोशिश कर रहा है और नहीं छू पा रहा है बट उसने मेरी वीडियोस देख ली है तो वो काफी पॉजिटिव हो गया है और वो कूदे जा रहा है कूदे जा रहा है लोग आ कर के कह रहे हैं कि अरे भाई क्या कर रहे हो क्या जरूरत है ये सब करने की ऐसे नहीं होगा साइंटिफिकली आपको अगर यह सब करना है तो पहले पढ़ाई करो, फिर ये करो, फिर वो करो। फिर एक पूरा एक प्रोसेस है, एक सिस्टम है। कि नहीं नहीं नहीं जो होता अच्छे के लिए होता है। मैं तो इसको करके दिखाऊंगा, मैं करके रहूंगा। आई कैन डू इट। नथिंग इज इंपॉसिबल।
अगर तो आप जो भी कर रहे हो उसके प्लस माइनस दोनों को समझ करके फिर एक्शन ले रहे हो। फिर अगर उसका आउटकम पॉजिटिव आ रहा है या नेगेटिव भी आ रहा है। तो आप कह सकते हो कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। बट बिना समझे कुछ भी कर रहे हो और फिर आप बोल रहे हो कि जो होता है अच्छे के लिए होता है तो वह आपको बुरे तरीके से फंसा देगा। दैट इज जस्ट अ सुपरस्टिशन। दैट इज विशफुल थिंकिंग।
मतलब कोई भी काम कर रहे हो उसको पहले अच्छे से समझ रहे हो। कि इसमें रिस्क क्या है? इसमें रिवॉर्ड क्या है? इसमें सक्सेस की प्रोबेबिलिटी क्या है? फेलियर होने के चांसेस क्या है? कंपटीशन कितना है? मेरी अपनी कैपेबिलिटी क्या है? मेरी अपनी स्ट्रेंथ और मेरी अपनी वीकनेसेस क्या है? वो सब कुछ समझ करके प्रॉपर कैलकुलेशन के साथ साइंटिफिकली स्टेप बाय स्टेप। फिर आप एक्शन ले रहे हो।
यानी ये कह सकते हो वेल इनफॉर्म्ड एक्शन ले रहे हो। बैक बाय अंडरस्टैंडिंग बैक बाय रिसर्च, बैक बाय डेटा। फिर आप कुछ कर रहे हो। अपनी पर्सनालिटी को समझ करके कि मेरे लिए है भी या नहीं है या हो सकता है मेरे लिए कुछ और हो बट मैं जबरदस्ती बस इसको पकड़ करके बैठा हूं या बैठी हूं तो कुछ अच्छे के लिए नहीं हो रहा है बट अगर आप अपनी तरफ से सही से समझ करके फिर किसी काम को करते हो और फिर अगर कुछ बुरा भी हो जाता है और अगर आपकी ये थॉट प्रोसेस है कि जो होता है अच्छे के लिए होता है तो उससे क्या होता है एक्चुअल में कुछ अच्छा नहीं हुआ है। बट आपको वो जो हुआ है उसकी अच्छी साइड दिखने लग जाती है।
आपका ध्यान वहां चला जाता है। नहीं तो इसका अपोजिट भी आप चाहे तो होल्ड ऑन कर सकते हो। दोनों ही झूठ है। दोनों ही बकवास है। ना तो जो होता है वो अच्छे के लिए होता है ना जो होता है वो बुरे के लिए होता है। जो होता है सो होता है। ये दुनिया ऐसी ही है। लेकिन अगर आपकी यह सोच है कि जो होता है बुरे के लिए होता है। मेरे साथ तो कभी कुछ अच्छा हो ही नहीं सकता।
तो अगर कोई बहुत बड़ी अपॉर्चुनिटी भी आपके सामने होगी तो उसको आप नहीं देख पाओगे ना। कुछ अच्छा भी हो रहा होगा तो उसको आप नहीं देख पाओगे। क्योंकि लाइफ में कभी भी ऐसा नहीं होता है कि सिर्फ अच्छा हो रहा होता है। अच्छा बुरा सब साथ में चल रहा होता है। इट्स नॉट ब्लैक और वाइट। इट्स ब्लैक एंड वाइट। तो इट्स जस्ट अबाउट कि आपका ध्यान वहां चला जाता है। अगर आपकी थॉट प्रोसेस यह है जैसे मेरी थॉट प्रोसेस यही है कि कुछ भी होता है लाइफ में तो सबसे पहले अंदर से यही आता है जो होता है अच्छे के लिए होता है। तो उससे क्या होता है कि हम फटाफट से पास्ट से फ्री हो जाते हैं। कोई बैगेज नहीं होता है।
और हम आराम से बैठ करके देखते हैं। अच्छा ये प्रॉब्लम आई है। बहुत बड़ी प्रॉब्लम है। अभी लग रहा है कि शायद दिस इज़ द एंड ऑफ़ द वर्ल्ड। सब कुछ खत्म हो गया है। अब इसके आगे और कुछ नहीं हो सकता है। लेकिन जो होता है अच्छे के लिए होता है तो शायद इसमें भी कहीं कुछ अच्छा होगा। अब जबरदस्ती में फोर्सफुली कुछ करने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। मतलब दो अलग-अलग चीजें हैं। एक है पर्सिस्टेंस, एक है ये थॉट। दो अलग-अलग चीजें हैं कि आपको वो जो कर रहे हो उसको करते रहना है या उसको छोड़ना है। वो एक अलग प्रॉब्लम है। जब उस प्रॉब्लम का आप सलूशन निकाल लेते हो अगर निकालते हो तो अब सलूशन कैसे निकलेगा? ये अपने आप में बहुत बड़ा क्वेश्चन है। क्योंकि आपके घर वालों का तो वो बैकग्राउंड है नहीं क्रिकेट का।
दैट्स आई आई एम जस्ट अस्यूमिंग कि आपके घर वालों का ये क्रिकेट का बैकग्राउंड नहीं है। राइट? सर क्रिकेट वाज़ एन जस्ट एग्जांपल। अच्छा दैट्स जस्ट एन एग्जांपल। तो इसी एग्जांपल को आगे लेकर के चलते हैं कि आपके घर वालों का बैकग्राउंड क्रिकेट का तो है नहीं। तो अब सही डिसीजन कैसे लें कि करें या ना करें? अब यहां पे क्रिकेट की जगह हम बिज़नेस को भी लगा सकते हैं कि मान लो घर वालों का बैकग्राउंड है जॉब का।
आपको बिजनेस करना है। और बिजनेस में आप जो करना चाहते हो वो नहीं हो रहा है। और आप कह रहे हो जो होता है वो अच्छे के लिए होता है। पिताजी की एफडी टूट गई है जो पिताजी ने 2030 साल में कमाई है। जो होता है अच्छे के लिए होता है। घर का रेंट देने के लिए पैसा नहीं है। जो होता है वह अच्छे के लिए होता है। एक के बाद एक फेलियर्स होते ही चले जा रहे हैं। जो होता है वह अच्छे के लिए होता है। तो यह आपको फंसा रहा है। और फंसा रहा है। बिल्कुल ऐसे जैसे कि कोई गैंबलर जाकर के कसीनो में बैठ गया है और एक के बाद एक बेट लगाता चला जा रहा है। और नहीं आ रहा है तो जो होता है वह अच्छे के लिए होता है। सर ने कहा था।
कभी तो आएगा। कभी तो आएगा। कभी तो एक का 100 होगा। अब अगर वो आ गया तब भी आप फंसे नहीं आया तब भी आप फंसे। क्यों? बिकॉज़ द नेचर ऑफ दैट जॉब इज गैंबलिंग। तो गैंबलिंग में कभी कोई जीत ही नहीं सकता है। तो अगर आप गैंबलिंग में हार जाते हो तो वो अच्छा है। शॉर्ट टर्म में भी, लॉन्ग टर्म में भी। जीत जाते हो तो वो बुरा है। तो कभी भी ऐसा मत करो कि जो भी मैंने कहा या किसी ने भी कहा। उसको पकड़ करके लाइफ के किसी भी फेज में लगा दो और यही गड़बड़ आप करते हो कि जो मैं कहता हूं उसको ध्यान से नहीं सुनते। किस कॉन्टेक्स्ट में मैंने कहा वो नहीं सुना नहीं समझा। बस अभी लाइफ की जिस भी सिचुएशन में हो वहां पर जाकर के उसको लगा दिया।
यह बिल्कुल ऐसा है कि जैसे पेट दर्द की कोई दवाई है और आपकी प्रॉब्लम कुछ और है। मान लो सर में दर्द हो रहा है और आपने कहा सर ने कहा था ये दवाई बहुत अच्छी है। हां अच्छी है लेकिन पेट के लिए है। बट आपने ये सुना ही नहीं कि पेट दर्द के लिए है, सर दर्द के लिए है। आपने कहा दवाई बड़ी अच्छी है। तो दवाई खाए चले जा रहे हो। और फिर कह रहे हो मेरा सर दर्द ठीक क्यों नहीं हो रहा है। क्योंकि वो उसके लिए है ही नहीं। तो पहले कॉन्टेक्स्ट को समझो। इंटरेस्ट आ रहा है इस सब में। यस सर। बिकॉज़ ये एक अलग तरह से देखना है लाइफ को। ऐसे हम यूजुअली करते नहीं हैं।
हम कुछ रट लेते हैं बस कुछ भी बोलने लग जाते हैं। अभी ये जो हम डिस्कशन कर रहे हैं। दिस इज़ ऑल स्पॉनटेनियस। मतलब हम एक-एक स्टेप बाय स्टेप देखते जा रहे हैं। फिर आगे बढ़ते जा रहे हैं। तो मेरे साथ-साथ में चलोगे तो मजा आएगा। तो लाइफ में पहले जो भी कर रहे हो उसको समझो। फिर समझ करके सही डिसीजन लो। अब सही क्या होता है और गलत क्या होता है। सही मतलब वो नहीं जो आपको सही लग रहा है या घर वाले कह रहे हैं कि सही है। वो जो उस फील्ड के बारे में अच्छे से समझता है या समझती है और उसका कोई खुद का सेल्फिश मोटिव नहीं है उसके अंदर।
नहीं तो आपके लिए गलत भी होगा डिसीजन तो वो इंसान अगर उसका सेल्फिश मोटिव होगा तो वो कहेगा नहीं यही सही है आपके लिए। क्यों? क्योंकि उसको फायदा है। जैसे किसी इंस्टट्यूट के पास में चले गए और जाकर के पूछ रहे हो कि भाई यह मुझे करना चाहिए। वो कहेगा बिल्कुल करना चाहिए। और कल नहीं आज ही करना चाहिए। आप कहोगे इसके लिए तो मेरा घर गिरवी रखना पड़ेगा। बिल्कुल रखना चाहिए। अरे आपका तो हुआ ही पड़ा है। आप नहीं करोगे तो कौन करेगा? तो वो सही डिसीजन नहीं है। तो आपको क्या करना चाहिए कि जैसे मान लो करियर से रिलेटेड कोई कंफ्यूजन है तो किसी करियर काउंसलर के पास में जाओ।
उसके साथ में बैठो। समझो कि आपकी पर्सनालिटी क्या है? आपका बैकग्राउंड क्या है? क्या उससे वो कनेक्ट हो रहा है? नॉट ऑन द बेसिस ऑफ जैसा आप चाहते हो। बस यहीं पे गड़बड़ हो जाती है। हम कैसे चलते हैं लाइफ में? कि दिस इज़ व्हाट आई वांट।
उससे क्या फर्क पड़ता है? क्या आपकी पर्सनालिटी वैसी है? क्या आपका जो बेसिक बॉडी माइंड का स्ट्रक्चर है वो वैसा है? क्या पास्ट में जो भी आपने किया है, जिस भी तरीके से किया है, क्या वह उससे अलाइन होता है? मतलब डाटा क्या बोल रहा है? अगर आपकी पूरी लाइफ को एक तरीके से चैट जेपीटी में डाल दिया जाए जो भी इंफॉर्मेशन है तो वो क्या कहेगा? उसमें से क्या निकल के आएगा? क्या आपको ये करना चाहिए या नहीं करना चाहिए? या फिर किसी साइकोलॉजिस्ट के साथ में बैठ सकते हो।
अगर बहुत कंफ्यूजन है तो क्या लगता है? है ₹500 ₹1000 या किसी ऐसे इंसान के साथ में बैठ सकते हो फैमिली में फ्रेंड सर्कल में जिसने वह किया हो जो आप करना चाहते हो और फिर उनसे समझ सकते हो कि क्या मुझे ये करना चाहिए या नहीं करना चाहिए मुझे कंफ्यूजन है तो क्या हम इसको ब्रेकडाउन कर सकते हैं मतलब उनसे जाकर के क्या क्वेश्चंस पूछने हैं दिस इज़ आल्सो अ साइन ऑफ इंटेलिजेंस जो हमारे अंदर होना चाहिए कि मतलब पहले से एक पेपर पेन ले के क्वेश्चन क्वेश्चंस बना करके लेके जाओ कि मैंने पिछले 10 साल में यह किया है, ऐसे किया है, ऐसे किया है, ऐसे किया है। बट मैंने सुना है कि इसके लिए यह करना होता है, यह करना होता है, यह करना होता है। मुझे लगता है कि मैं कर लूंगी लेकिन जो मेरी हिस्ट्री है मेरी लाइफ की वो यह कह रही है कि शायद मैं नहीं कर पाऊंगी।
तो क्या मुझे यह करना चाहिए या यह नहीं? तो कुछ और करना चाहिए? आपने किया तो कैसे किया? वो कहेंगे कि अच्छा ऐसे किया, ऐसे किया, ऐसे किया। अच्छा इतना तो मैं नहीं कर पाऊंगी। तो छोड़ो इसको। आपने बोला क्रिकेट है बट आई एम अस्यूमिंग कि आप कोई ना कोई एंट्रेंस क्रैक करने की बात कर रहे हो। सर वैसे नीट के अटेम्प्ट्स चल रहे हैं। बाकी दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीएससी बायोेडिकल साइंस कर रही हूं। तो अब आपको इस पूरी सिचुएशन को अनबायस्ड हो के समझना पड़ेगा। यानी कि अगर आप प्राइवेट कॉलेज से करते हो तो वहां पर फीस बहुत ज्यादा है।
गवर्नमेंट कॉलेज से करते हो तो वहां पर फीस कम है लेकिन कंपटीशन बहुत ज्यादा है। तो क्या आपका ऐसा बैकग्राउंड है कि अगर प्राइवेट में हो भी गया तो क्या वह फीस देने का इतना पैसा देने का वो बैकग्राउंड है? तो अगर नहीं है तो उस चैप्टर को ही क्लोज किया क्योंकि अगर आप कहते हो कि मैं इतने का लोन ले के फिर यह करूंगी तो आपको यह भी देखना है कि स्टार्टिंग सैलरी कितनी होगी वो इतनी होगी। इतने की ईएमआई होगी तो मैं क्यों अननेसेसरी अपने ऊपर इतना प्रेशर क्रिएट करूं। हो सकता है पास्ट में वो बहुत अच्छा हो बट हो सकता है अभी ना हो।
तो और क्या ऑप्शंस हैं? लेट मी फिगर इट आउट। और गवर्नमेंट कॉलेज से क्रैक करने के लिए मैंने दो-तीन बार ट्राई किया। नहीं हुआ। दैट इज ओके। कोई भी हम बिजनेस भी करते हैं। कोई भी काम करते हैं। एक बार में नहीं होता है। बार-बार हम करते हैं। उसको सीखते हैं। फिर उसको करते हैं। बट क्या जो नहीं हुआ उससे हमने कुछ सीखा? क्या कुछ ऐसा सीखा जिससे हमको यह कॉन्फिडेंस आ रहा है कि अच्छा पहली दूसरी बार में यह गड़बड़ हुई थी।
तीसरी बार अब मैं इसको इस तरीके से नहीं इस तरीके से करूंगी। यह मेरी स्ट्रेटजी है और यह आई एम ऑलमोस्ट 100% श्योर कि ये काम करेगी। अगर अंदर से ये आ रहा है और आप अपना 100% वहां पे दे रहे हो। फिर उसके बाद में नहीं भी हुआ। फिर आप बोल रहे हो जो होता है अच्छे के लिए होता है। बहुत बढ़िया है। बट जिस तरह से आपने दो बार ट्राई किया और नहीं हुआ। तीसरी बार भी सेम वैसे ही ट्राई करने वाले हो। विद दिस बाय सेइंग जो होता है अच्छे के लिए होता है। दो बार नहीं हुआ तीसरी बार में होगा। तीसरी बार किया 100 बार में भी नहीं होगा। अगर उसी तरह से करोगे जिस तरह से दो बार किया। क्लियर हुआ मैंने क्या कहा? हम किसी काम को कर रहे हैं गलत तरीके से।
मान लो एक गाड़ी चला रहे हैं। उसमें दबाना चाहिए ब्रेक लेकिन हम एक्सलरेटर को दबा रहे हैं। उसकी वजह से एक्सीडेंट हो रहा है। अब चाहे दो बार करो यह गलती चाहे 10 बार करो चाहे 100 बार करो। हर बार एक्सीडेंट होगा। बट अगर पकड़ लिया है अपनी गलती को समझ लिया है कि क्रैक कैसे होता है और मैं क्या गलत कर रही हूं और उस गलती को रेक्टिफाई किया और जो सही है उसको फिगर आउट करने की कोशिश करी पहले से अस्यूम नहीं किया कि मेरा तरीका सही है।
नहीं हुआ इसका मतलब तरीका गलत है। चाहे कड़वा लगे सुनने में। यह एक बहुत बड़ा सीक्रेट है जो मैं अभी आप लोगों को बता रहा हूं। बहुत लोग हैं जो अपना नया कुछ शुरू करते हैं और क्या करते हैं? खुद को बेवकूफ बनाते हैं। इंसान जितना खुद को बेवकूफ बनाता है ना और किसी को नहीं बनाता। अपना नया कोई काम शुरू किया। उसके बाद में जैसे मेरा उनसे डिस्कशन हो रहा है।
मेरे रिलेटिव हैं, फ्रेंड हैं तो मैंने पूछा हां भाई कितने की सेल हो रही है? क्या हो रही है? हो रही है, नहीं हो रही है? नहीं अभी तो नहीं हो रही। अभी ना मार्केट थोड़ा ऐसा है, वैसा है, ये है, वो है लेकिन 6 महीने बाद हो जाएगी। मैंने कहा 6 महीने तक का जो पैसा चाहिए उसको काम को चलाने के लिए वो है आपके पास में? नहीं नहीं वो नहीं है लेकिन आ जाएगा ना।
वो तो मैं लोन ले लूंगा। मैं यहां से ले लूंगा, वहां से ले लूंगा। मैंने कहा मेरे भाई ऐसा है। अगर अभी नहीं चल रहा तो 6 महीने बाद भी नहीं चलेगा। अरे सॉरी ये क्या बोल रहे हो? आप तो इतना मोटिवेट करते हो पूरी दुनिया को। आप नेगेटिव क्यों बोल रहे हो? अरे भाई यह नेगेटिव नहीं है। आप बिजनेस गलत तरीके से कर रहे हो। यह जो कहानियां आप बना रहे हो अपने माइंड में कि ऐसा है वैसा है वैसा है।
ये सब बकवास है। सच क्या है कि अभी तक आपने क्रैक नहीं किया है कि वो क्या टैक्टिक है या क्या वो तरीका है जिस तरीके से आपको सक्सेस मिलेगी या प्रॉफिट आएगा या सेल्स आएगी। आपको अभी तक समझ ही नहीं आया कि बिजनेस है क्या? आपने गलती कर दी है बट उस गलती को ठीक किया जा सकता है। बस यह है कि आप पहले इस बात को मान लो कि मेरे से गलती हो गई।
बट कोई मानने को तैयार नहीं है कि मेरे से गलती हो गई। बल्कि कोई आकर के बोलता है तो उससे लड़ने लग जाते हैं। नहीं नहीं मेरे से गलती कैसे हो सकती है। क्यों भाई? अंबानी हो। अंबानी से भी गलती होती है। तो ये बेसिक सी चीज है। अगर इसको आप समझ पा रहे हो जो बात मैं कह रहा हूं। यानी अपनी लाइफ का सेंटर पॉइंट पॉजिटिव थिंकिंग, नेगेटिव थिंकिंग, डिजायर, फियर इस सबको नहीं बना रहे। अंडरस्टैंडिंग को बना रहे हो। जो भी कर रहे हो उसको समझते चले जा रहे हो।
फिर चाहे वो आउटकम आ रहा है या नहीं आ रहा है जो आप चाहते हो। लेकिन अगर आपको प्रॉपर्ली समझ करके एक काम को करना आ गया तो जो होता है अच्छे के लिए होता है। क्योंकि फिर आपकी आदत बन गई। अब लाइफ में आप जो भी करोगे प्रॉपर्ली अच्छे से आराम से ठंडे दिमाग से सोच समझ करके करोगे। यह सुनने में आपको बहुत सिंपल लग रहा होगा क्योंकि हमारा जो माइंड है वो उसको एक बीमारी है। द डिजीज ऑफ ओवर सिंपलीफाइंग कॉम्प्लेक्स थिंग्स।
ये इतना सिंपल नहीं है। समझ आ गया तो आसान है। नहीं आया तो बहुत मुश्किल है। मतलब इसमें क्या-क्या आया प्रॉपर समझ करके करने में? पहला खुद को समझना। दूसरा दुनिया को समझना सिर्फ खुद को समझने से काम हो जाएगा। आपने खुद को समझ लिया और समझ करके कहा मेरी ऐसी पर्सनालिटी है जिसके हिसाब से मैं यह कर सकती हूं।
अरे आंख खोल के दुनिया में तो देख लो कि वो करने वाले कितने लोग हैं। और जो आप करने का सोच रहे हो वो पहले ही लाखों लोग करके फेल हो करके उसको छोड़ चुके हैं। तो क्यों कर रहे हो? या तो अलग तरीके से करो। तो जब भी मैं अंडरस्टैंडिंग की बात करता हूं तो यह एक बेसिक नेचर है। अगर जो भी आप कर रहे हो लाइफ में उसकी वजह से आपकी जो अंडरस्टैंडिंग है यानी कि चीजों को समझने की जो शक्ति है वो बढ़ रही है तो फिर चाहे सक्सेस मिल रहा है या फेलियर मिल रहा है जो होता है अच्छे के लिए होता है।
बट अगर बिना समझे किसी भी काम को कर रहे हो रट करके कर रहे हो बस करने के लिए कर रहे हो या सक्सेसफुल होने के लिए कर रहे हो तो आप बेवकूफ हो। अब सक्सेस मिल भी गई नहीं भी मिली कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि ये बेवकूफी लाइफ के एक एस्पेक्ट में नहीं रहेगी। ये हर एस्पेक्ट में नजर आएगी। और एक तरफ अगर कहीं तुक्का लग भी गया वो मिल भी गया जो हमको चाहिए।
दूसरे किसी एस्पेक्ट में जाकर के फंस जाएगी। आया समझ में? मान लो फाइनेंशियली कहीं से कुछ जैक लग गया या कहीं कोई अप्रोच लग गई और कहीं नौकरी मिल भी गई। अरे तो नौकरी ही तो मिली है। बट अंडरस्टैंडिंग की जरूरत क्या सिर्फ यहीं तक है।
कि एक अच्छी सी नौकरी मिल जाए और पैसा आ जाए। रिलेशनशिप नाम की भी तो एक चीज है। क्या वहां पर अंडरस्टैंडिंग का कोई रोल नहीं है? किससे शादी करें? किससे नहीं? अच्छा शादी हो गई। उसके बाद में पता लगा कि वो अच्छा नहीं है क्योंकि कोई भी अच्छा नहीं होता है। कोई भी अच्छा नहीं होता है और कोई भी बुरा नहीं होता है। सभी अच्छे भी होते हैं, बुरे भी होते हैं। तो आपको समझना होता है कि मैं कैसा हूं या कैसी हूं।
सामने वाला कैसा है, कैसी है? फिर उसके हिसाब से एक रिलेशनशिप आगे बढ़ती है। तो क्या रोल आया यहां पर? अंडरस्टैंडिंग। जो लोग बेवकूफ होंगे वह क्या करेंगे? कुछ भी सुन के इधर-उधर से कहीं किसी की बातें सुनी और बस उसको फटाफट से अपनी लाइफ में अप्लाई कर दिया कि तुम शांत हो, तुम पीसफुल हो। तुम्हें किसी के कुछ भी करने से या कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
बस ये सुन लिया। अपने माइंड में 50 बार बोल दिया। अब सामने वाला आकर के कुछ बदतमीज़ी कर रहा है। और आप शांति से वहां पर बैठे हो। और उसका लेवल बढ़ता जा रहा है टॉर्चर का। अरे, तो लड़ना भी आना चाहिए। दिस इज पार्ट ऑफ अंडरस्टैंडिंग।
कब लड़ना है, कब नहीं, कितना लड़ना है, कितना नहीं, किससे लड़ना है, किससे नहीं। सब कुछ आना चाहिए इस दुनिया में। कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता है। सही से यूज कर रहे हो तो बुरे से बुरा भी हथियार अच्छा है और गलत तरीके से कर रहे हो तो अच्छे से अच्छा भी बुरा है। तो ये जो अंडरस्टैंडिंग डेवलप करने की जो आदत है हैबिट है अगर ये आपकी पड़ गई है क्योंकि सक्सेस फेलियर हमेशा हमारे हाथ में नहीं होता है। हां अगर अंडरस्टैंडिंग पक्की है तो एक हद तक होता है।
मतलब प्रोबेबिलिटी बढ़ती जाती है सक्सेसफुल होने की। किसी भी काम को समझ करके करते हो तो बिना समझे करते हो तो फेलियर के चांसेस बढ़ते हैं। बट अगर आपकी अंडरस्टैंडिंग बढ़ती चली जा रही है लाइफ में मतलब चीजों को समझ करके करने की हर चीज की डेप्थ में जाकर के उसको जो जैसा है वैसा देख कर के अपने लेवल पे जिस एनवायरमेंट में आप हो उस लेवल पे जो काम आप कर रहे हो अगर जॉब कर रहे हो तो लोगों के लेवल पर बिजनेस कर रहे हो अगेन वहां पर लोग भी आ गए कस्टमर्स भी आ गए प्रोडक्ट आ गया सर्विस आ गया बहुत सारी चीजें आ गई तो सब कुछ समझना होगा फिर इस दुनिया को समझना होगा कि पूरी दुनिया में क्या चल रहा है। उसका इंपैक्ट हमारी कंट्री पर क्या आने वाला है। उसके हिसाब से डिसीजन लेना होगा।
ये सब अंडरस्टैंडिंग का पार्ट है। तो जो भी मैंने कहा अगर मैं उसको सम अप करूं तो वो ये है कि आप चाहे कुछ कर रहे हो चाहे नहीं कर रहे हो। अगर आपकी अंडरस्टैंडिंग नॉट जस्ट थ्योरेटिकली बट प्रैक्टिकली जो भी आप कर रहे हो उससे रिलेटेड बेटर हो रही है तो जो होता है वह अच्छे के लिए होता है।

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