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भारत के श्रम जगत में एक ऐतिहासिक और बहुचर्चित बदलाव की प्रक्रिया चल रही है – नए श्रम संहिताकरण (New Labour Codes) का लागू होना। ये चार नए कोड 70 साल पुराने श्रम कानूनों की जगह ले रहे हैं और देश के 50 करोड़ से अ�धिक कर्मचारियों और नियोक्ताओं के कामकाज के तरीके को फिर से परिभाषित करेंगे।

यह सिर्फ कानूनों का बदलाव नहीं, बल्कि भारत के औद्योगिक संबंधों (Industrial Relations) की एक नई नींव का निर्माण है। अगर आप सैलरीड कर्मचारी हैं, व्यवसाय चलाते हैं, या फिर भारतीय अर्थव्यवस्था में दिलचस्पी रखते हैं, तो यह जानकारी आपके लिए बेहद जरूरी है।

आखिर क्या हैं ये नए लेबर कोड? एक सरल परिचय

स्वतंत्रता के बाद से, भारत में लगभग 40 से अधिक केंद्रीय श्रम कानून और 100 से अधिक राज्य-स्तरीय कानून थे। इनकी जटिलता और आपस में टकराव ने नियोक्ताओं और कर्मचारियों, दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं।

इसी उलझन को सुलझाने और 'ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस' (व्यवसाय में सुगमता) को बढ़ावा देने के मकसद से केंद्र सरकार ने इन सैकड़ों कानूनों को चार नए, सरल और समेकित कोड्स में बदलने का फैसला किया। ये चार कोड हैं:

  1. वेतन संहिता (Code on Wages), 2019: यह सभी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन और वेतन भुगतान को रेगुलेट करता है।

  2. औद्योगिक संबंध संहिता (Industrial Relations Code), 2020: यह हड़ताल, नौकरी से निकाला और शिकायत निवारण जैसे मुद्दों से संबंधित है।

  3. सामाजिक सुरक्षा संहिता (Code on Social Security), 2020: यह पीएफ, ग्रेच्युटी, ईएसआई जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार करता है।

  4. कार्य सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशा संहिता (Occupational Safety, Health and Working Conditions Code), 2020: यह कार्यस्थल की सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम के घंटों आदि को परिभाषित करता है।

ध्यान रहे, इन कोड्स को संसद से मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन इन्हें पूरी तरह से लागू करने के लिए अभी अधिसूचना (Notification) जारी नहीं हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि ये 2024 के अंत या 2025 की शुरुआत में लागू हो सकते हैं।

नए कोड्स की मुख्य विशेषताएं और आम आदमी पर प्रभाव

आइए अब इन कोड्स की कुछ प्रमुख विशेषताओं को समझते हैं और देखते हैं कि ये आपकी नौकरी, सैलरी और काम के माहौल को कैसे प्रभावित करेंगे।

1. 'न्यूनतम वेतन' की सार्वभौमिक परिभाषा

पुराने system में अलग-अलग राज्यों और उद्योगों के लिए सैकड़ों न्यूनतम वेतन दरें थीं। नया वेतन कोड पूरे देश के लिए एक 'फ्लोर वेज' (आधार वेतन) तय करेगा। इसका मतलब है कि देश के किसी भी कोने में काम करने वाले श्रमिक को एक निश्चित न्यूनतम वेतन मिलने की गारंटी होगी। यह असंगठित क्षेत्र (Unorganized Sector) के करोड़ों श्रमिकों के लिए एक बड़ी राहत हो सकती है।

2. आपकी सैलरी संरचना में बदलाव: एक बड़ा शिफ्ट

यह शायद सबसे चर्चित बदलाव है। नए कोड के तहत, बेसिक सैलरी (मूल वेतन) कुल वेतन के कम से कम 50% होना चाहिए।

  • वर्तमान स्थिति: कई कंपनियां बेसिक सैलरी कम रखकर महंगाई भत्ता (DA) और अन्य भत्ते ज्यादा देती थीं। इससे पीएफ (Provident Fund) और ग्रेच्युटी (Gratuity) में कंपनी का योगदान कम हो जाता था।

  • नई स्थिति: अब अगर बेसिक सैलरी बढ़ेगी, तो पीएफ और ग्रेच्युटी की गणना भी उसी के आधार पर होगी। इससे रिटायरमेंट के समय कर्मचारी को ज्यादा फंड मिलेगा।

  • दूसरा पहलू: हालांकि, इससे 'टेक-होम सैलरी' (Take-Home Salary) में कमी आ सकती है, क्योंकि पीएफ कटौती बढ़ जाएगी। कर्मचारी को अल्पकाल में कम नकदी मिलेगी, लेकिन दीर्घकाल में उसकी बचत ज्यादा होगी।

उदाहरण: मान लीजिए आपकी कुल सैलरी ₹60,000 है।

  • पुराने सिस्टम में: बेसिक सैलरी = ₹25,000, भत्ते = ₹35,000। आपका पीएफ केवल ₹25,000 के आधार पर कटता।

  • नए सिस्टम में: बेसिक सैलरी कम से कम ₹30,000 (50%) होगी। अब पीएफ ₹30,000 के आधार पर कटेगा, जिससे आपकी मासिक पीएफ बचत बढ़ जाएगी।

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3. चार दिन की वर्किंग वीक? गलतफहमी का स्पष्टीकरण

यह एक बहुत ही आकर्षक और गलत समझे जाने वाला बिंदु है। नए कोड में कहा गया है कि एक सप्ताह में काम के घंटे 48 ही रहेंगे, लेकिन अब कंपनियों को यह लचीलापन मिलेगा कि वे 4 दिन में 12-12 घंटे की शिफ्ट लगाकर यह लक्ष्य पूरा कर सकती हैं।

  • ध्यान रखें: इसका मतलब यह नहीं है कि आपकी छुट्टियां बढ़ जाएंगी। इसका मतलब है कि आपके काम के दिन कम होंगे, लेकिन रोजाना के काम के घंटे बढ़ सकते हैं। यह व्यवस्था हर उद्योग और भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं होगी।

4. सामाजिक सुरक्षा का विस्तार

सामाजिक सुरक्षा कोड का दायरा बढ़ाया गया है। अब प्लेटफॉर्म-आधारित या 'गिग इकॉनमी' वर्कर्स (जैसे ओला-उबर ड्राइवर, जोमैटो डिलीवरी पार्टनर) को भी सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने की कोशिश की गई है। साथ ही, महिला कर्मचारियों को रात की शिफ्ट में काम करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम किए जाएं।

5. 'एक लाइसेंस, एक रिटर्न' की अवधारणा

नियोक्ताओं के लिए यह एक बहुत बड़ी राहत है। पहले उन्हें अलग-अलग कानूनों के तहत कई लाइसेंस लेने पड़ते थे और अलग-अलग रिटर्न दाखिल करने पड़ते थे। अब इस प्रक्रिया को सरल बनाया जाएगा, जिससे अनुपालन (Compliance) आसान होगा और व्यवसायों पर का बोझ कम होगा।

विवाद और चिंताएं: दूसरा पक्ष

हर बड़े सुधार के साथ कुछ चिंताएं भी जुड़ी होती हैं। नए श्रम कोड के साथ भी ऐसा ही है।

  • ट्रेड यूनियनों की शक्ति पर असर: औद्योगिक संबंध कोड में हड़ताल करने की प्रक्रिया को और सख्त बनाया गया है। आलोचकों का मानना है कि इससे कर्मचारियों के हड़ताल के अधिकार पर असर पड़ेगा और ट्रेड यूनियनों की सौदेबाजी की शक्ति कमजोर होगी।

  • छोटे प्रतिष्ठानों के लिए छूट का अंत: पहले एक निश्चित संख्या से कम कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों को कई कानूनों से छूट मिलती थी। नए कोड्स में यह सीमा बढ़ा दी गई है, जिससे अब छोटे व्यवसाय भी इन नियमों के दायरे में आ जाएंगे। इससे उन पर अनुपालन का बोझ बढ़ सकता है।

  • राज्यों की भूमिका: श्रम एक 'समवर्ती विषय' (Concurrent Subject) है, यानी राज्य सरकारें भी अपने नियम बना सकती हैं। ऐसे में, यह सुनिश्चित करना एक चुनौती होगी कि सभी राज्य कोड्स के नियमों को एक जैसे तरीके से लागू करें।

 एक नए युग की शुरुआत

नए श्रम कोड निस्संदेह भारत के श्रम कानूनों में एक साहसिक और प्रगतिशील कदम हैं। ये जटिलता को सरल बनाते हैं, सामाजिक सुरक्षा के दायरे को विस्तार देते हैं और एक अधिक पारदर्शी व पूर्वानुमेय (Predictable) वातावरण का निर्माण करते हैं।

हालांकि, इनके सफल क्रियान्वयन (Implementation) पर ही सब कुछ निर्भर करेगा। सरकार, उद्योग जगत और कर्मचारी संगठनों के बीच सहयोग और विश्वास की जरूरत होगी। यह सुधार देश की अर्थव्यवस्था को गति देने और वैश्विक निवेश को आकर्षित करने में एक मजबूत आधार साबित हो सकता है, बशर्ते इसे संतुलित और न्यायसंगत तरीके से लागू किया जाए।

अंत में, यह बदलाव डराने के लिए नहीं, बल्कि समझने और तैयार होने के लिए है। एक बार लागू होने के बाद, यह कोड भारत के कामकाजी तरीके को नई दिशा देकर रहेंगे।

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