विक्रम और वेताल की कहानी | vikram betal stories in hindi
विक्रम और वेताल की कहानी | vikram betal stories in hindi
राजा विक्रम वेताल के किस्सों के बारे में बहुत सी कहानिया और किस्से जो की कई सारी किताबों में लिखे गए विक्रमादित्य और वेताल पच्चीसी |
सिंघासन बत्तीसी जैसी प्रसिद्ध किताबे है | जिन्हें लोकप्रियता प्राप्त हुई है |
प्राचीन समय में रचित पुस्तक बेताल पच्चीसी प्रसिद्ध महकबी सोमदेव भट्ट द्वारा २५०० सौ बर्ष पूर्व रचित किया गया था |
प्राचीन समय में विक्रमादित्य नाम के एक राजा हुआ करते थे। राजा विक्रम अपने शौर्य
पराक्रम और साहस, के लिए प्रसिद्ध थे । माना जाता है राजा को अपने प्रजा के प्रति
उनके दुःख दर्द को जान्ने के लिए बह स्त्री के भेष में नगर में घूमा करते थे | और अपने प्रजा के दुखो को
दूर किया करते थे |
लेख के अनुसार रजा विक्रम ने वेताल को पेड़ से
उतारकर ले जाने की २५ बार कोशिश की थी और वेताल ने हर बार रस्ते में चलते विक्रम
को एक कहानी सुनाई |
और विक्रम से वचन मागा की इस कहानी में अगर तू बोला तो मई उढ जाऊंगा और वापस पेड़ पर चला जाऊँगा और वेताल कहानी सुनाना सुरु कर देता है |
रूपसेन नामक राजा की कहानी :
एक समय की बात है भारत देश में बर्धमान नाम का एक राज्य था जहाँ
रूपसेन नाम का रजा राज्य करता था एक दिन एक युबक इसका नाम करणबीर नौकरी की तलाश
में राजा के पास आया राजा को बह ब्यक्ति बुद्धिमान लग रहा था |
रजा ने उस युबक से कहा .... तुम्हें क्या चाहिये ? रजा का यह प्रश्न..
युवक बोला..... महाराज
मुझें एक तोला सोना चाहिए | रजा यह सुनकर अचंभित हुआ | रजा ने एक प्रश्न और पूंछा..
तुम्हरे साथ और कौन कौन है ? ...... युबक ने उत्तर दिया मेरे साथ मेरा बीटा, एक बेटी ,और मेरी पत्नी है रजा अचंभित होकर मन में यह सोंचने लगा की यह चार लोग इतने सारे धन का आखिर करेंगे क्या ?
रजा यह जानना कहता था इसलिए
राजा ने उसकी बात को मानते हुए उस युबक को १००० तोला सोना देकर अपने भवन कक्ष के
वाहर एक सैनिक की नौकरी दे दी | बह युबक रोज अपने हाथों में
तलवार और ढल के साथ एक सैनिक के रूप में पहरेदारी करता और शाम को करणवीर १००० तोला
सोना राजा के खजाने से लेता और अपने घर चला जाता |
करणवीर मिले हुए १००० तोले
का का आधा हिस्सा ब्राह्मण में बाँट देता था बाकि बचे आधे हिस्से को दो हिस्सों
में बाँट देता जिसमे एक हिस्सा वैरागियों , सन्यासियों महमानों में
वांट देता अब बचे आधे हिस्से को बह गरीवो भोजन कराता बाद में बचे हिस्से में अपने
पत्नी और बच्चों को खिलाता फिर अपने आप खाता
एक रात राजा को जंगल से को
रोने की आवाज सुनाई दी रजा ने करणवीर को बुलाया और कहा जरा जाकर देखो यह आवाज कहाँ
से आ रही है उसने जाकर देखा तो तो एक राजलक्ष्मी नाम की इस्त्री रो रही थी उसने
पूंछा आखिर तुम क्यों रो रही हो उसने उत्तर दिया मै इसलिए रो रही हूँ क्योंकि उस
महल में दरिद्रता का डेरा पड़ने वाला है वहां का क्योंकि मै महल से चली
जाउंगी और उस महल के राजा की मृतु हो जाएगी |
करणवीर ने राजलक्ष्मी से इससे ;; कहा इसका कोई उपाय है क्या ? ऐसा ना हो – इसके लिए मुझे क्या करना
होगा ?
यहाँ से पूरब में एक योजन पर एक देवी का मन्दिर है। जहाँ पर तुम्हें अपने और अपने परिवार का त्याग करना होगा |
राजा की जान बचाने के लिए करमवीर ने योजन देवी के मन्दिर में अपने प्राणों को त्याग
दिया जिससे रजा की जान बच गयी |
करणवीर की मृतु का समाचार सुनकर राजा रोने लगा और सोचने लगा कि ऐसा राज करने से धिक्कार है | ऐसी जिन्दगी जीने से क्या फायदा तभी अचानक माँ लक्ष्मी प्रकट होती हैं और राजा से कहती है की मैं तुम्हरे दया भाव से प्रसन्न हु मागो क्या मांगते हो | यह सुन कर राजा माँ लक्षमी से उनको ज़िंदा करने का वरदान मांगता है और माँ लक्ष्मी उनको पुनः जिबित कर देती है |
इतना कहकर बेताल बोला, "हे राजन्, बताओ सबसे अधिक पुण्य किसने जमा किया है?"राजा बोला , राजा का ।
बेताल ने पूछा , क्यों ?
राजा ने कहा, क्योंकि यह धर्म है कि हमारा प्रभु अपना प्राण देता है; लेकिन चकर के लिए राजा के लिए महल को छोड़ना और तिनके की तरह
अपनी जान देने के लिए तैयार रहना बड़ी बात थी।
उसके बाद राजा ने सही स्थिति के अनुसार पशु राजा विक्रम को सही उत्तर देकर विक्रम की पीठ से उड़ान भरी और वापस पेड़ पर जाकर लटका दिया।
राजा ने बेताल को फिर से चलवा दिया, और राजा बेताल फिर से उसकी पीठ पर बैठ
गया, और फिर वही हुआ, क्योंकि सड़क लंबी थी, बेताल राजा की कहानी सुन रहा था।
best motivation kahani
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